Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ हैं। इन्हीं के कारण गति और स्थिति में सामंजस्य है और संसार की सारी व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। ___ लोक-व्यवस्था में इनका महत्व यह है कि यह लोक और अलोक की सीमा का निर्धारण करते हैं। जहां तक धर्म और अधर्म द्रव्य हैं वहाँ तक लोक है और उसके आगे अनंत अलोकाकाश है, जहाँ सिर्फ आकाश ही है, अन्य कोई द्रव्य नहीं है। आकाशास्तिकाय आकाश ऐसा द्रव्य है जो सभी द्रव्यों को अवकाश-स्थान देता है। पुद्गल, जीव, धर्म, अधर्म, काल-ये सभी द्रव्य आकाश में ही अवस्थित हैं। ____ आकाश द्रव्य सर्वव्यापक है। विभिन्न वस्तुओं के मध्य जो खाली स्थान हमें दिखाई देता है, वहाँ भी आकाश है। वैज्ञानिकों ने आकाश के लिए Space शब्द दिया है। यह स्पेस अन्तरिक्ष आदि में भी है। ( २१ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50