Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 26
________________ रूप में समझते हैं । यहाँ धर्म का अभिप्राय हैगति सहायकता (Fulcrum of Motion ) धर्म, अधर्म, आकाश, काल और जीव एवं पुद्गल - इन छह द्रव्यों में केवल जीव और पुद्गल ही गतिशील हैं । वे ही एक स्थान से दूसरे स्थान को गमनागमन क्रिया करते हैं । उनकी इस गमन क्रिया में धर्मद्रव्य उदासीन रूप से सहायक होता है । उसी प्रकार जैसे जल मछली की गति में सहायक होता है । 1 यह सत्य है कि गमन शक्ति स्वयं मछली में है किन्तु उस शक्ति की अभिव्यक्ति जल के बिना नहीं हो पाती । इसी प्रकार गमन-शक्ति स्वयं जीव और पुद्गल में अवश्य है किन्तु इस शक्ति की अभिव्यक्ति के लिए धर्मद्रव्य की सहायता आवश्यक है । i धर्मास्तिकाय का अस्तित्व वैज्ञानिकों ने भी ( १७ )

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