Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 27
________________ स्वीकार कर लिया है । वे भी गतिसहायक द्रव्य आवश्यक मानते हैं । उन्होंने यह स्वीकार किया है, इस विश्व में Ether नाम का एक तत्व है, जो प्रत्येक वस्तु यहाँ तक कि ध्वनि तरंगों, विद्युत् तरंगों और रेडियो तरंगों की गति में आवश्यक है । इस तत्व Ether के अभाव में ये तरंगें गति नहीं कर सकतीं । लेकिन धर्म द्रव्य गति का उदासीन सहायक है । वह जीव अथवा पुद्गल को गति करने के लिए प्रेरित नहीं करता; हाँ, यदि वे स्वयं चलने की क्रिया करें तो वह सहायक हो जाता है । यही स्थिति वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त ईधर की है । अधर्मास्तिकाय इसका कार्य धर्मद्रव्य अस्तिकाय के विपरीत पुद्गल को स्थिर होने में, ठहर होता है। ठीक उसी प्रकार ( १८ ) है । यह जीव और में उदासीन सहायक

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