Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 23
________________ (३) गन्ध और (४) वण (रंग) ये चार गुण हों संसार की यह विचित्रता है कि जीव विशुद्ध रूप में कहीं नहीं प्राप्त होता, सर्वत्र यह पुद्गल (matter) के साथ ही पाया जाता है। अतः आवश्यक है कि जीव और पुद्गल के भेद को समझ लिया जाय । इससे स्थिति अधिक स्पष्द हो जायेगी। दोनों (जीव और पुद्गल) के गुण धर्म तथा लक्षण साफ-साफ समझ में आ जायेंगे । आधुनिक विज्ञान ने जीव के निम्न लक्षण .. स्वीकार किये हैं (१) उसमें प्रजनन शक्ति (Generating Power) हो, अर्थात् वह सन्तति उत्पादन के योग्य हो। (२) उसमें स्वयमेव वृद्धि (Growth) की क्षमता हो। ( १४ )

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