Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 21
________________ (२) त्रीइन्द्रिय-चींटी आदि तीन इन्द्रिय वाले जीव हैं। इनके स्पर्शन, रसना और घ्राण, ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं। (३) चतुरिन्द्रिय-इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु--ये चार इन्द्रियाँ होती हैं । बिच्छु आदि ऐसे ही जीव हैं। ___इन तीनों विकलेन्द्रियों के अतिरिक्त पंचेन्द्रिय जीव होते हैं। इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र-पांचों इन्द्रियां होती हैं। किंतु मन की अपेक्षा इनके भी दो भेद हैं-(१) संज्ञी, जिनके मन है। मन का अभिप्राय चिंतन-मनन करने की शक्ति है। इसे आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में छठी इन्द्रिय (Sixth sense) भी कहा जाता है। (२) दूसरे प्रकार के जीव असंज्ञी होते हैं, जिनके मन-मननशक्ति का अभाव होता है। हाथी, घोड़ा, गाय, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी संज्ञी ( १२ )Page Navigation
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