Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 19
________________ अग्नि (तेजस ) कायिक, (४) वायुकायिक और (५) वनस्पतिकायिक | इनके और भी अवान्तर भेद हैं । इन्हें स्थावरकाय भी कहा गया है । स्थावर का अभिप्राय है— जो अपनी हितबुद्धि से प्रेरित होकर हलन चलन न कर सकें, धूप से छाया में न जा सकें । इन पाँचों प्रकार के जीवों में इस प्रकार की चेतनात्मक गति का अभाव है । किन्तु एकेन्द्रिय जीव भी सुख-दुःख का वेदन जरते हैं, हर्ष और शोक प्रकट करते हैं, अवांछित व्यक्ति से भयभीत भी होते हैं । वनस्पतिकायिक जीवों अर्थात् पेड़-पौधों की संवेदना तो आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है । न्यूयार्क के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा० वेक्स्टर ने तो यहाँ तक सिद्ध कर दिया कि पेड़-पौधे मानव द्वारा बोले गये झूठ को ( १० )Page Navigation
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