Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 20
________________ पकड़ सकते हैं और हत्यारों को भी पहचान सकते आचारांग सूत्र में भी स्थावरकायिक जीवों मिट्टी आदि की संवेदनशक्ति का वर्णन भगवान् महावीर ने आज से २६०० वर्ष पहले ही कर दिया था। यों जैन परम्परा लाखों वर्ष पूर्व ही पृथ्वी, जल वनस्पति आदि की सचेतनता और परमाणु शक्ति की प्रचंडता का वर्णन कर चुकी है। दूसरे प्रकार के जीव त्रस कहलाते हैं । ये अपनी हित-बुद्धि से इधर-उधर गमन-आगमन किया करते हैं। ये विकलेन्द्रिय कहलाते हैं । इनके तीन भेद हैं (१) द्वीन्द्रिय-जिनके स्पर्शन और रसना - ये दो इन्द्रियाँ होती हैं। कृमि आदि दो इन्द्रिय जीव हैं। ( ११ )Page Navigation
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