Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 17
________________ प्राणों का धारण तथा चेतना ये जीव के प्रमुख गुण हैं । यह गुण अन्य किसी तत्व अथवा द्रव्य में नहीं पाये जाते । चेतना जीव की जानने, देखने, अनुभव करने की शक्ति है। इसी शक्ति के कारण जीव सुखदुःख का अनुभव अथवा वेदन करता है तथा जानता और देखता है। जीवित रहने के लिए जीव को प्राण धारण करना अनिवार्य है । प्राण दो प्रकार के हैं-(१) आन्तरिक, और (२) बाह्य । जीव के आन्तरिक प्राण हैं-(१) ज्ञान, (२) दर्शन, (३) सुख, (४) वीर्य तथा बाह्य प्राण हैं(१) श्रोत्रेन्द्रिय बलप्राण, (२) चक्षु इन्द्रिय बलप्राण, (३) घ्राणेन्द्रिय बलप्राण , (४) रसनेन्द्रिय बलप्राण, (५) स्पर्शेन्द्रिय बलप्राण, (६) मनोबल प्राण, (७) वचनबल प्राण, (८) कायबल प्राण, ( ८ )Page Navigation
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