Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 16
________________ पुण्य-पाप, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष तत्व हैं । यही पुण्य-पाप का उपार्जन करता है, आस्रव और बंध करता है, संवर और निर्जरा भी इसी की प्रक्रिया है तथा यही मुक्त होता है। इसीलिए आठ तत्वों को जीव तत्व का विस्तार कहा गया जीव के लक्षण __ जीव का लक्षण है- उपयोग, चेतना। यों जीव सच्चिदानन्द है । यही सत् है, अर्थात् इसका चिरन्तन अस्तित्व है। ऐसा नहीं कि पृथ्वी आदि के विकार से इसकी उत्पत्ति हो जाती है, अपितु यह स्वतन्त्र तत्व है। जीव अनादि है, अविनाशी है, अक्षय है, ध्रुव है, नित्य है, और शाश्वत है-सदा काल रहने वाला है। जीव वह है जो जीवित रहता है। प्राण धारण करता है-जीवति प्राणान् धारयतीति जीवः। ( ७ )Page Navigation
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