Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 14
________________ जैन तीर्थंकरों, महर्षियों ने अपनी सूक्ष्म निरीक्षण समीक्षण शैली में इनका जो समाधान दिया वही जैन तत्त्वज्ञान की रीढ़ और आधारभूमि है तथा उसी को जैन तत्त्ववाद ( Jain Metaphysics) कहा जाता है । जैन तत्त्ववाद उपरोक्त नौ प्रश्नों के उत्तर में जैन दर्शन ने जो समाधान दिये, वे क्रमशः निम्न प्रकार हैं१. तुम जीव हो ( जीव तत्व ) । २. इस विश्व की रचना में दो तत्व प्रमुख हैं— ( जीव और अजीव ) । ३. सुख का कारण पुण्य है । ( पुण्य तत्व) ४. दुःख का कारण पाप है । ( पाप तत्व) ५. दुःख आत्मा ने स्वयं ही अपने प्रमाद से किये हैं । (आस्रव तत्व ) ६. कषाय-राग-द्व ेष आदि के कारण कर्म ( ५ )Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50