Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 11
________________ उसके बारे में विभिन्न प्रकारके प्रश्न पूछ-पूछ कर न उन्हें परेशान कर देता है। यह सब जिज्ञासा वृत्ति तो है ही। जबकि पशु-समाज में जिज्ञासा नाम की कोई वृत्ति ही नहीं होती है । जिस वातावरण में पैदा हुए, उसा में रम गये, भूख-प्यास की तृप्ति कर ली और उसी स्थिति में जीवन का अन्त हो गया। लेकिन मानव इन सबसे अलग है। बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त उसकी जिज्ञासा प्रबल रहती है। उसके मन-मस्तिष्क में भाँति-भाँति के प्रश्न उठते रहते हैं । वह स्वयं अपने आपको और वातावरण को जानना चाहता है। ज्ञान-विज्ञान की परत-दर-परत खोलना चाहता है। उसके मन में जिज्ञासा घुमड़ती है-मैं क्या हाँ से आया हूँ ? क्यों आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ? मैं कर्म क्यों करता हूँ ? क्या मेरे कर्मों का फल मिलेगा ? कैसा फल मिलेगा ? मैं रोगी क्यों हो ( २ )Page Navigation
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