Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ (झ) नवमे और दशवं परिच्छेद में श्रावक का दिनकृत्य पूजाभक्ति, रात्रिकृत्य, पाक्षिक कृत्य, चौमासी और संवत्सरी आदि कृत्यों का विस्तृत विवेचन है। ___ ग्यारहवें परिच्छेद में भगवान ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक का संक्षिप्त इतिहास दिया है । __और बारहवं परिच्छेद में भगवान् महावीर स्वामी के गौतम प्रादि ग्यारह गणधरों की तात्त्विक चर्चा का उल्लेख करके भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद का उपयोगी इतिवृत्त दिया है । जिस में तत्कालीन प्रमाणिक जैनाचार्यों की कतिपय जीवन घटनाओं का भी उल्लेख है । इस प्रकार यह ग्रन्थ बारह परिच्छेदों में समाप्त किया है। भापाप्रस्तुत ग्रंथ की भाषा आज कल की परिष्कृत अथवा छटी हुई हिन्दी भाषा मे कुछ विभिन्नता और कुछ समानना रखती हुई है । आज से पचास वर्ष पहिले प्रचलित बोलचाल की भाषा में अधिक सम्बन्ध रखने वाली और साहचर्य वशात् पंजाबी, गुजरानी और मारवाडी के मुहाविरे के कतिपय शब्दों को साथ लिये हुए है। परन्तु इस से इस के महत्व में कोई कमी नहीं पाती । भाषाओं के इतिहास को जानने वाले इस बात की पूरी साक्षी देंगे, कि अन्य प्राकृतिक वस्तुओं की भांति भाषा और लिपि में भी परिवर्तन बराबर होता रहता है । परिवर्तन का यह नियम केवल हिन्दी भाषा

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 495