Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ (छ) और सम्यक्त्वेशल्योद्धार, ये विशेष स्थान रखते हैं । अंत में इतना ही कहना पर्याप्त है कि आप ने जैन संसार के धर्म क्षेत्र में शासन की जो बहुमूल्य सेवायें की हैं, उन के लिये वर्तमान जैन समाज माप का सदैव ऋणी रहेगा। ग्रन्थनाम. प्रस्तुत ग्रंथ का जो नाम रक्खा है, वह विषय निरूपण के सर्वथा अनुरूप है । क्योंकि इस ग्रंथ में जैन धर्म के प्रसिद्ध देव, गुरु और धर्म इन तीन तत्वों का विवेचन बड़े विस्तार से किया गया है । और धर्मतत्त्वनिरूपण में जीव ' अजीव आदि तत्त्वों का भी भलीभांति विवेचन आया है । इस लिये जैनतत्त्वों के वर्णन करने में आदर्शस्वरूप होने से प्रस्तुत अन्य का 'जैनतत्वादर्श' यह नामकरणं बहुत ही उपयुक्त प्रतीत होता है। विषय विभागप्रस्तुत ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों को १२ परिच्छेदों में नोट-स्वर्गीय आचार्य श्री के आदर्श जीवन का साधन्त स्वाध्याय करने की इच्छा रखने वाले निम्न लिखित पुस्तकों को पढ़ें। १. आत्मचरित्र (उर्दू) .. २ श्री विजयानन्द सूरि ( गुजराती.) , ३. क्रातिकारी जैनाचार्य (हिन्दी):

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