Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 8
________________ प्रासाङ्गिक वक्तव्य । ग्रन्थकारप्रस्तुत ग्रंथ के रचियता स्वनामधन्य आचार्य श्री १००८ श्री विजयानंद सूरि प्रसिद्ध नाम आत्माराम जी महाराज वीसवीं सदी के एक युगप्रधान आचार्य हुए हैं। आप की सत्यनिष्ठा, आत्मविश्वास, निर्भयता और प्रतिभासम्पत्ति ने जैन समाज के जीर्णतम कलेवर में नवीन रक्त का संचार करने में सचमुच ही एक अद्भुत रसायन का काम किया। आज जैन समाज में धार्मिक और सामाजिक जितनी भी जागृति नज़र आती है, उस का प्रारम्भिक श्रेय अधिक से अधिक आप ही को है । आप की वाणी और लेखिनी ने समाज के जीवन-क्षेत्र में क्रांति के चीज को वपन करके उसे पल्लवित करने में एक श्रमशील चतुर माली का काम किया है । आज समाज के अंदर विचार-स्वतंत्रता का जो वातावरण फैल रहा है, तथा रूढिवाद का अन्त करने के लिये जो तुमुल धर्म युद्ध किया जा रहा है, यह सय इसी का परिणाम है। पंजाब की मातृभूमि को इस बात का गर्व है कि उस ने वर्तमान युग में एक ऐसे महापुरुष को जन्म दिया कि जो अहिंसा त्याग और तपश्चर्या की सजीव मूर्ति होते हुए अपनी सत्यनिष्ठा, आत्मविश्वास और प्रतिभावल से

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