Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 11
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला अपेक्षा से यह उपचार किया है' - ऐसा समझना चाहिए। (मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय 7, पृष्ठ 251, सोनगढ़) (3) निमित्त की मुख्यता से कथन आता है, किन्तु निमित्त की मुख्यता से कार्य नहीं होता- ऐसा व्यवहार कथन का अभिप्राय जानना चाहिए। प्रश्न 41 - किस द्रव्य के कितने प्रदेश हैं ? उत्तर - जीव, धर्म, अधर्म और लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं; पुद्गल को संख्यात, असंख्यात और अनन्त - इस प्रकार तीनों प्रकार के प्रदेश हैं; कालद्रव्य और पुद्गल परमाणु एक प्रदेशी हैं; आकाश अनन्त प्रदेशी हैं। प्रश्न 42 - प्रत्येक जीव कितना बड़ा है ? उत्तर - प्रत्येक जीव प्रदेशों की संख्या अपेक्षा से लोकाकाश के बराबर असंख्य प्रदेशवाला है, किन्तु सङ्कोच-विस्तार के कारण वह अपने शरीर-प्रमाण है और मुक्त जीव अन्तिम शरीर प्रमाण, किन्तु वह शरीर से किञ्चित् न्यून आकार का होता है। प्रश्न 43 - लोकाकाश के बराबर कौन जीव होता है ? उत्तर - मोक्ष जाने से पूर्व समुद्घात' करनेवाला जीव लोकाकाश के बराबर बड़ा होता है। प्रश्न 44 - जीवद्रव्य किस क्षेत्र में कभी नहीं जाता? और उसका कारण क्या? उत्तर - वह अलोकाकाश में कभी नहीं जाता, क्योंकि वह लोक का द्रव्य है। 1. मूल शरीर को छोड़े बिना आत्मा के प्रदेशों का बाहर निकलना, उसे समुद्घात कहते हैं।

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