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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
प्रश्न 62 - सत्, उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यरूप त्रयात्मक है - इस कथन में क्या आध्यात्मिक रहस्य भरा है ?
उत्तर प्रत्येक द्रव्य एक समय में अपने उत्पाद - व्यय - ध्रुवरूप त्रिस्वभाव का स्पर्श करता है, उसी समय निमित्त होने पर भी, द्रव्य उनका स्पर्श नहीं करते। सम्यग्दर्शन हुआ, वहाँ आत्मा उस सम्यग्दर्शन के उत्पाद को, मिथ्यात्व के व्यय को और श्रद्धारूप अपनी ध्रुवता को स्पर्श करता है, किन्तु सम्यक्त्व के निमित्तभूत ऐसे देव, गुरु या शास्त्र को स्पर्श नहीं करता; वे तो भिन्नस्वभावी पदार्थ है । सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति, मिथ्यात्व का व्यय तथा श्रद्धापने की अखण्डतारूप ध्रुवता इन तीनों का आत्मा में ही समावेश होता है, किन्तु इनके अतिरिक्त जो बाह्य निमित्त हैं, उनका समावेश आत्मा में नहीं होता । प्रति समय उत्पादव्यय-ध्रुवतारूप द्रव्य का अपना स्वभाव है और उस स्वभाव का ही प्रत्येक द्रव्य स्पर्श करता है, अर्थात् अपने स्वभावरूप ही वर्तता है, किन्तु परद्रव्य के कारण किसी के उत्पाद-व्यय-ध्रुव नहीं है । परद्रव्य भी उसके अपने ही उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वभाव में अनादि अनन्त वर्तता है और यह आत्मा भी अपने उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वभाव में ही अनादि-अनन्त वर्तता है - ऐसा समझनेवाले ज्ञानी को अपने आत्मा के उत्पाद-व्यय-ध्रुव के अतिरिक्त बाह्य में कोई भी कार्य किञ्चित्मात्र अपना भासित नहीं होता, इसलिए उत्पादव्यय-ध्रुवस्वरूप अपना जो आत्मा है, उसके आश्रय से निर्मलता काही उत्पाद होता जाता है; मलिनता का व्यय होता जाता है और ध्रुवता का अवलम्बन बना ही रहता है - इसका नाम धर्म है।
अजीवद्रव्य भी अपने उत्पाद - व्यय - ध्रुवरूप त्रिस्वभावका
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