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प्रकरण तीसरा
(3) छाया और प्रतिबिम्ब पुद्गलद्रव्य के वर्ग गुण की विभावअर्थपर्याय है।
(4) सूर्य विमान पुद्गलद्रव्य के अनेक स्कन्धों का अनादि -अनन्त पिण्ड है। सूर्य में जो तेज (प्रकाश) है, वह वर्ण गुण की विभावअर्थपर्याय है।
(सूर्यलोक में वास करनेवाले ज्योतिषी देवों का नाम भी सूर्य है। देवगति नामकर्म के धारावाही उदय के वशवर्ती स्वभाव द्वारा वे देव हैं।
(प्रवचनसार गाथा 68 की टीका) (5) घड़ी के लटू का चलना, वह पुद्गलद्रव्य की क्रियावतीशक्ति के कारण होनेवाली गमनरूप विभावअर्थपर्याय है।
(6) दु:ख, वह जीवद्रव्य के सुख गुण की आकुलतारूप विभावअर्थपर्याय है।
(7)मोक्ष, वह जीवद्रव्य के समस्त गुणों की स्वभावअर्थ - पर्याय और प्रदेशत्व गुण की स्वभावव्यञ्जनपर्याय है।
(8) केवलज्ञान, वह जीवद्रव्य के ज्ञान गुण की परिपूर्ण स्वभावअर्थपर्याय है।
प्रश्न 74 - अनादि-अनन्त, सादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त – इन्हें उदाहरण देकर समझाइये?
उत्तर - (1) अनादि-अनन्त - जिसका आदि और अन्त न हो, उसे अनादि-अनन्त कहते हैं। द्रव्य और गुण अनादिअनन्त हैं । अभव्य जीव की संसारी पर्याय भी अनादि-अनन्त है।
(2) सादि-अनन्त - क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञानादि