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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
अपनी अपनी भाषा में अपने ज्ञान की योग्यतानुसार समझते हैं। उन निरक्षर ध्वनि को ॐकार ध्वनि भी कहते हैं। जब तक वह ध्वनि श्रोताओं के कर्ण प्रदेश तक न पहुँचे, तब तक वह अनक्षर ही हैं और जब वह श्रोताओं के कर्णों में प्राप्त हो जाती है, तब अक्षररूप होती है। (देखो, गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 227 की टीका)
प्रश्न 84 - सर्वज्ञ भगवान के केवलज्ञान का क्या विषय है ? उत्तर - 1. सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य।
(मोक्षाशास्त्र, अध्याय - 1, सूत्र 29) अर्थात् केवलज्ञान का विषय सर्व द्रव्य (गुणोंसहित) और उनकी सर्व पर्यायें हैं - अर्थात् केवलज्ञान एक साथ सर्व पदार्थों को और उनके सर्व गुणों तथा पर्यायों को जानता है।
2. श्री कुन्दकुन्दाचार्य कृत प्रवचनसार गाथा 37 में कहा है - तक्कालिगेव सव्वे सदसब्भूदां हि पज्जया तासिं। वट्टते ते णाणे विसेसदो दव्वजादीणं॥37॥ अर्थात उन (जीवादि) द्रव्य जातियों की समस्त
राजवार्तिक टीका (अध्याय 5, सूत्र 24 की टीका)4.श्लोकवार्तिक टीका 1 (अध्याय 5, सूत्र 24 की टीका)5. अर्थ प्रकाशिका (अध्याय 5, सूत्र 24 की टीका)6. तत्त्वार्थसूत्र पाँचवाँ अध्याय (अंग्रेजी टीका) इन्दौर से प्रकाशित। 7. तत्त्वार्थसार, अजीव अधिकार, सूत्र 63,8.नियमसार, गाथा 108 की टीका। 9. चर्चा समाधान, पृष्ठ 26-27, 10. बृहद् द्रव्यसंग्रह गाथा 16 की टीका। 11. समवसरण पाठ ब्रह्मचारी भगवानसागरजी कृत, पृष्ठ 174, 12. पञ्चास्तिकाय, पृष्ठ 4 तथा 153 (जयसेनाचार्य की टीका), 13. बनारसी विलास - ज्ञान बावनी। 14. विद्वज्जन बोधक भाग - 1, (पृष्ठ 156 से 159 तथा उसमें लिखित आधार), 15. बिहारीदासजी कृत जिनेन्द्र स्तुति -'इच्छा बिना भविभाग्य तें, तुम ध्वनि सु होय निरक्षरी।' 16. 'एकरूप निरक्षर उपजत, उचरत नेक प्रसङ्ग।'(प्राचीन कवि)