Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 391
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 391 उत्तर - आत्मा से समस्त भावकर्मों और द्रव्यकर्मों के विप्रमोक्ष को अर्थात् अत्यन्त वियोग को मोक्ष कहते हैं। प्रश्न 78 - उस मोक्ष की प्राप्ति का उपाय क्या है ? उत्तर - संवर और निर्जरा ही मोक्ष प्राप्ति का उपाय है। प्रश्न 79 - संवर किसे कहते हैं ? उत्तर - आस्रव के निरोध को संवर कहते हैं, अर्थात् नये विकार का रुकना तथा अनागत [नवीन] कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध न होना – उसे संवर कहते हैं। प्रश्न 80 - निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मा के एकदेश विकार का कम होना तथा पूर्व काल में बाँधे हुए कर्मों से अंशतः सम्बन्ध छूटना - उसे निर्जरा कहते हैं। प्रश्न 81 - संवर और निर्जरा होने का उपाय क्या है ? उत्तर - निश्चयसम्यगदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - इन तीनों की ऐक्यता, संवर-निर्जरा होने का उग्र उपाय है। चौथे गुणस्थान में निश्चयसम्यग्दर्शन होने से संवर-निर्जरा प्रारम्भ होते हैं। प्रश्न 82 - उन तीनों की पूर्ण ऐक्यता एक साथ होती है या अनुक्रम से? उत्तर - अनुक्रम से होती है। प्रश्न 83 - तीनों की पूर्ण ऐक्यता होने का क्रम क्या है? उत्तर - ज्यों-ज्यों जीव गुणस्थान में आगे बढ़ता है, त्यों-त्यों

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