Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 399
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला उत्तर - उसके दो भेद हैं- (1) स्वस्थान अप्रमत्तविरत और (2) सातिशय अप्रमत्तविरत । प्रश्न 99 - स्वस्थान अप्रत्तविरत किसे कहते हैं ? उत्तर – जो हजारों बार छठवें से सातवें गुणस्थान में और सातवें से छठवें गुणस्थान में आयें - जायें, उसे स्वस्थान अप्रत्तविरत कहते हैं । 399 प्रश्न 100 - सातिशय अप्रमत्तविरत किसे कहते हैं ? उत्तर - जो श्रेणी चढ़ने के सन्मुख हो, उसे सातिशय अप्रमत्त विरत कहते हैं ? प्रश्न 102 श्रेणी चढ़ने के लिए कौन पात्र है ? उत्तर - क्षायिक सम्यग्दृष्टि और द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि ही श्रेणी चढ़ते हैं; प्रथमोशम सम्यक्त्ववाले तथा क्षायोपशमिक सम्यक्त्ववाले श्रेणी नहीं चढ़ सकते । प्रथमोपशम सम्यक्त्ववाले जीव प्रथमोपशम सम्यक्त्व को छोड़कर क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि होकर प्रथम ही अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ का विसंयोजन करके दर्शनमोहनीय की तीन आकृतियों का उपशम करके या तो द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि हो जाएँ, अथवा तीनों प्रकृतियों का क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो जाएँ, तब वे श्रेणी चढ़ने को पात्र होते हैं । - प्रश्न 103 श्रेणी किसे कहते हैं ? उत्तर - जीव के जिस शुद्धभाव के निमित्त से चारित्रमोहनीय कर्म की शेष 21 प्रकृतियों का क्रम उपशम तथा क्षय हो, उस शुद्धभाव को श्रेणी कहते हैं । -

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