Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 397
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 397 उत्तर अनादि मिथ्यादृष्टि के पाँच मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी क्रोध - मान-माया - लोभ - प्रकृतियों और सादि मिथ्यादृष्टि को सात प्रकृतियों के उपशम से जो उत्पन्न हो, उसे प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं । - प्रश्न 92- द्वितीयोपशम सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर - सातवें गुणस्थान में क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव श्रेणी चढ़ने की सन्मुख -दशा में अनन्तानुबन्धी चतुष्टय - क्रोधमान - माया - लोभ का विसंयोजन, अप्रत्याख्यानादिरूप करके दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियों के उपशमकाल में जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है, उसे द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते हैं । प्रश्न 93 - मिश्र गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर - सम्यक् - मिथ्यात्वप्रकृति के उदय के वश होने से जीव को मात्र सम्यक्त्व परिणाम प्राप्त नहीं होता; अथवा मात्र मिथ्यात्वरूप परिणाम भी प्राप्त नहीं होता परन्तु मिले हुए दहीगुड़ के स्वाद की भाँति एक भिन्न जाति का मिश्र परिणाम होता है, उसे मिश्र गुणस्थान कहते हैं । - प्रश्न 94 - अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का क्या स्वरूप है ? उत्तर - दर्शनमोहनीय की तीन और अनन्तानुबन्धी की चार प्रकृतियाँ - इन सात प्रकृतियों के उपशम अथवा क्षय अथवा क्षयोपशम के सम्बन्ध से और अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, के उदय में युक्त होनेवाले, व्रत रहित तथा अंशत: स्वरूपाचरणसहित निश्चय सम्यक्त्वधारी चौथे

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