Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ 396 प्रकरण दसवाँ समय किसी एक अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय में युक्त होने से जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो गया है - ऐसा जीव सासादन गुणस्थानवाला होता है। प्रश्न 90 - सम्यक्त्व के कितने भेद हैं ? उत्तर - सम्यक्त्व के तीन भेद हैं - (1) उपशमसम्यक्त्व, (2) क्षायिकसम्यक्त्व, (3) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व। (1) उपशमसम्यक्त्व - जीव का स्वसन्मुख पुरुषार्थपूर्णक उद्यम हो, तब दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियाँ - मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक् और अनन्तानुबन्धी चार प्रकृतियाँ - क्रोध, मान, माया और लोभ - इन सात प्रकृतियों का स्वयं उपशम होता है, उस समय जीव का जो भाव हो, उसे उपशमसम्यक्त्व कहते हैं। (2) क्षायिकसम्यक्त्व - जीव के स्वसन्मुख पुरुषार्थपूर्वक उद्यम हो, तब सातों प्रकृतियों का क्षय होता है; उस समय जीव का जो भाव हो, उसे क्षायिकसम्यक्त्व कहते हैं। (3)क्षायोपशमिकसम्यक्त्व - छह प्रकृतियों - मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया-लोभ के अनुदय और सम्यक्प्रकृति नाम की प्रकृति के उदय में युक्त होने से जो भाव उत्पन्न हो, उसे क्षायोपशमिकसम्यक्त्व कहते हैं।* उपशम सम्यक्तव के दो भेद हैं - (1) प्रथमोपशम सम्यक्त्व और (2) द्वितीयोपशम सम्यक्त्व। प्रश्न 91 - प्रथमोशम सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी हेतु गोम्मटसार आदि ग्रन्थ देखना चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419