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प्रकरण दसवाँ
समय किसी एक अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय में युक्त होने से जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो गया है - ऐसा जीव सासादन गुणस्थानवाला होता है।
प्रश्न 90 - सम्यक्त्व के कितने भेद हैं ?
उत्तर - सम्यक्त्व के तीन भेद हैं - (1) उपशमसम्यक्त्व, (2) क्षायिकसम्यक्त्व, (3) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व।
(1) उपशमसम्यक्त्व - जीव का स्वसन्मुख पुरुषार्थपूर्णक उद्यम हो, तब दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियाँ - मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक् और अनन्तानुबन्धी चार प्रकृतियाँ - क्रोध, मान, माया और लोभ - इन सात प्रकृतियों का स्वयं उपशम होता है, उस समय जीव का जो भाव हो, उसे उपशमसम्यक्त्व कहते हैं।
(2) क्षायिकसम्यक्त्व - जीव के स्वसन्मुख पुरुषार्थपूर्वक उद्यम हो, तब सातों प्रकृतियों का क्षय होता है; उस समय जीव का जो भाव हो, उसे क्षायिकसम्यक्त्व कहते हैं।
(3)क्षायोपशमिकसम्यक्त्व - छह प्रकृतियों - मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया-लोभ के अनुदय और सम्यक्प्रकृति नाम की प्रकृति के उदय में युक्त होने से जो भाव उत्पन्न हो, उसे क्षायोपशमिकसम्यक्त्व कहते हैं।*
उपशम सम्यक्तव के दो भेद हैं - (1) प्रथमोपशम सम्यक्त्व और (2) द्वितीयोपशम सम्यक्त्व।
प्रश्न 91 - प्रथमोशम सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी हेतु गोम्मटसार आदि ग्रन्थ देखना चाहिए।