________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
395
नहीं होता। बारहवें गुणस्थान में चारित्रगुण क्षायिकभाव के कारण पूर्ण हो चुका किन्तु आनुषंगिक अन्यगुणों के चारित्र पूर्ण नहीं है।
तेरहवाँ सयोगकेवली गुणस्थान योगों के सद्भाव की अपेक्षा से होता है, इसलिए उसका नाम सयोग तथा केवलज्ञान सद्भाव से सयोगकेवली है। इस गुणस्थान में सम्यग्ज्ञान की पूर्णता हो जाती है, किन्तु समस्त गुणों के चारित्र की पूर्णता न होने से मोक्ष नहीं होता।
चौदहवाँ अयोगकेवली गुणस्थान योगों के अभाव की अपेक्षा से होता है, इसलिए उसका नाम अयोगकेवली है। इस गुणस्थान के अन्त में सम्यक्चारित्र की पूर्णता हो जाती है, इस गुणस्थान से मोक्ष भी अब दूर नहीं रहा, अर्थात अ, इ, उ, ऋ, M - इन पाँच ह्रस्व स्वरों का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उतने समय में मोक्ष हो जाता है।
प्रश्न 88 - मिथ्यात्व गुणस्थान का क्या स्वरूप है ?
उत्तर - मिथ्यात्व प्रकृति के उदय में युक्त होने से अतत्त्वार्थ - श्रद्धानरूप आत्मा के परिणाम विशेष को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं । इस गुणस्थान में रहनेवाला जीव विपरीत श्रद्धान करता है और सच्चे धर्म की ओर उसकी रुचि [प्रीति] नहीं होती; जैसे कि - पित्तज्वरवाले रोगी को दूध आदि रस कड़वे लगते हैं, उसी प्रकार उसे भी सत्य धर्म अच्छा नहीं लगता।
प्रश्न 89 - सासादन गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर - प्रथमोशम सम्यक्त्व के काल में जब अधिक से अधिक छह आवली और कम से कम एक समय शेष रहे, उस