Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 390
________________ 390 प्रकरण दसवाँ उत्तर - धर्म का मूल सर्वज्ञ हैं । सर्वज्ञता की महिमा के लिए इसी ग्रन्थ में आगे एक परिशिष्ट दिया गया है। | गुणस्थान क्रम प्रश्न 73 - संसार में समस्त प्राणी सुख चाहते हैं और उसी का उपाय करते हैं, किन्तु सुख प्राप्त क्यों नहीं कर पाते? उत्तर - संसारी जीव सच्चे [वास्तविक] सुख का स्वरूप और उसका उपाय नहीं जानते तथा उसका साधन भी नहीं करते, इसलिए वे सच्चे सुख को प्राप्त नहीं कर सकते। प्रश्न 74 - सच्चे सुख का स्वरूप क्या है ? उत्तर - आह्लाद स्वरूप जीव के अनुजीवी सुखगुण की शुद्धदशा को सच्चा सुख कहते हैं, वही जीव का मुख्य स्वभाव है, परन्तु संसारी जीवों ने भ्रमवश सातावेदनीय कर्म के निमित्त से होनेवाले वैभाविक परिणतिरूप सातापरिणाम को ही सुख मान रखा है। प्रश्न 75 - संसारी जीवों को सच्चा क्यों प्राप्त नहीं होता? उत्तर - मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के कारण संसारी जीवों को सच्चा सुख प्राप्त नहीं होता। प्रश्न 76 - संसारी जीवों को सुख कब प्राप्त होता है ? उत्तर - संसार जीवों को परिपूर्ण सच्चा सुख, मोक्ष होने पर प्राप्त होता है। उनको सच्चे सुख का आंशिक प्रारम्भ निश्चयसम्यग्दर्शन से अर्थात् चौथे गुणस्थान से होता है। प्रश्न 77 - मोक्ष का स्वरूप क्या है ?

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