Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

View full book text
Previous | Next

Page 388
________________ 388 प्रकरण दसवाँ प्रश्न 68 - उपरोक्त पाँच भावों में से किस भाव की ओर उन्मुखता से धर्म का प्रारम्भ और पूर्णता होती है ? उत्तर - पारिणामिकभाव के अतिरिक्त चारों भाव क्षणिक हैं, एक समय पर्यन्त के हैं; और उसमें भी क्षायिकभाव तो वर्तमान में है नहीं: उपशमभाव हो तो वह अल्पकाल टिकता है और उदयक्षयोपशमभाव भी प्रति समय बदलते हैं; इसलिए उन भावों पर लक्ष्य करे तो वहाँ एकाग्रता नहीं हो सकती और न धर्म प्रगट सकता है। त्रिकालस्वभावी पारिणामिकभाव का माहात्म्य जानकर, उस ओर जीव अपनी वृत्ति करे (झुकाव करे) तो धर्म का प्रारम्भ होता है और उस भाव की एकाग्रता से बल से ही धर्म की पूर्णता होती है। (मोक्षशास्त्र, अध्याय 2, सूत्र 1 की टीका, सोनगढ़ प्रकाशन ) प्रश्न 69 - सर्व औदयिकभाव बन्ध के कारण है ? उत्तर - (1) सर्व औदयिकभाव बन्ध के कारण हैं - ऐसा नहीं समझना चाहिए, किन्तु मात्र मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग - यह चार भाव बन्ध के कारण हैं। (श्री धवला, पुस्तक 7, पृष्ठ 9) (2)...यदि जीव, मोह के उदय में युक्त हो तो बन्ध होता है; द्रव्यमोह का उदय होने पर भी यदि जीव शुद्धात्मभावना के बल द्वारा भावमोहरूप परिणमित न हो तो बन्ध नहीं होता। यदि जीव को कर्मोदय के कारण बन्ध होता हो तो संसारी को सर्वदा कर्म का उदय विद्यमान है, इसलिए उसे सर्वदा बन्ध होगा, कभी मोक्ष होगा ही नहीं। इसलिए ऐसा समझना कि कर्म का उदय, बन्ध का कारण नहीं है, किन्तु जीव का भावमोहरूप परिणमन बन्ध का कारण है। ( श्री प्रवचनसार गाथा 45 की जयसेनाचार्य कृत टीका के आधार से)

Loading...

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419