Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 382
________________ 382 प्रकरण दसवाँ (2) ज्ञेय = जानने योग्य (3) उपादेय = आदर करने योग्य; ग्रहण करने योग्य। प्रश्न 52- हेय क्या है? उत्तर - (1) जीवद्रव्य की अशुद्ध दशा दुःखरूप होने से त्यागने योग्य - हेय है; तथा पर निमित्त, विकार और व्यवहार का आश्रय हेय है। (नियमसार गाथा 38 तथा 50 की टीका) (2) वही आत्मबोध को प्राप्त होता है, जो व्यवहार में अनादरवान् है (उपेक्षावान्) अनासक्त है; और जो व्यवहार में आदरवान् है, आसक्त है, वह आत्मबोध को प्राप्त नहीं होता। (समाधि शतक - श्लोक 78 की उत्थानिका) प्रश्न 53 - ज्ञेय क्या है? उत्तर - स्व-पर अर्थात् सात तत्त्वसहित जीवादि छहों द्रव्यों का स्वरूप। प्रश्न 54 - उपादेय क्या है ? उत्तर - (1) एकाकार ध्रुव ज्ञायकस्वभावरूप निज आत्मा ही उपादेय है। (नियमसार गाथा 38 तथा 50 और उसकी टीका) ___(2) निश्चय-व्यवहार दोनों को उपादेय मानना, वह भी भ्रम है। मिथ्याबुद्धि ही है। (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 249) जीव के असाधारण भाव और गुणस्थान प्रश्न 55 - जीव के असाधारण भाव कितने हैं ? उत्तर - पाँच हैं - (1) औपशमिक, (2) क्षायिक, (3) क्षायोपशमिक, (4) औदयिक और (5) पारिणामिक -

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