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प्रकरण तीसरा
प्रश्न 82 - अरिहन्त भगवान, सिद्ध भगवान और अव्रती सम्यग्दृष्टि - इन तीनों का सम्यग्दर्शन समान है या कुछ अन्तर है ?
उत्तर - समान है । 'जिस प्रकार छद्मस्थ को श्रुतज्ञान अनुसार प्रतीति होती है, उसी प्रकार केवली और सिद्ध भगवान को केवलज्ञान-अनुसार ही प्रतीति होती है। जिन सात तत्त्वों का स्वरूप पहले निर्णीत किया था, वही अब केवलज्ञान द्वारा जाना; इसलिए वहाँ प्रतीति में परम अवगाढ़ता हुई, इसलिए वहाँ परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहा है, किन्तु पूर्व काल में श्रद्धान किया था, उसे यदि असत्य माना होता तो वहाँ अप्रतीति होती, किन्तु जैसा सात तत्वों का श्रद्धान छद्मस्थ को हुआ था, वैसा ही केवली सिद्ध भगवान को भी होता है; इसलिए ज्ञानादि की हीनता - अधिकता होने पर भी तिर्यञ्चादिक और केवली सिद्ध भगवान को सम्यक्त्वगुण तो समान ही कहा है।' (मोक्षमार्ग प्रकाशक अधिकार 9 वाँ, पृष्ठ 321-22 ) प्रश्न 83 - भगवान की दिव्यध्वनि क्या है ?
उत्तर
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• दिव्यध्वनि पुद्गलद्रव्य की पर्याय है । तेरहवें गुणस्थानवर्ती श्री अरिहन्तदेव की उपदेशात्मक भाषा निकलती है, उसे दिव्यध्वनि कहते हैं । भगवान का आत्मद्रव्य अखण्ड वीतराग भावरूप व अखण्ड केवलज्ञानरूप परिणमित हो गया है, इसलिए योग के निमित्त से जो दिव्यध्वनि खिरती है, वह भी अखण्ड, अर्थात् निरक्षर (अनक्षर) स्वरूप होती है।
भगवान की दिव्यध्वनि' देव, मनुष्य, तिर्यञ्च - सभी जीव
भगवान की दिव्यध्वनि सम्बन्धी विशेष आधार निम्न लिखित हैं
1. जिन की धुनि है ॐकाररूप, निरक्षरमय महिमा अनूप। (पण्डित द्यानतरायकृत जयमाला) 2. सर्वार्थसिद्धि टीका (अध्याय 5, सूत्र 24 की टीका ) 3. तत्त्वार्थ