Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 377
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला उत्तर - अज्ञानपूर्वक के आचरण की निवृत्ति के लिए है क्योंकि सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक आत्मा में स्थिरता, वह सम्यक् चारित्र है। 377 प्रश्न 39 - तत्त्वार्थ श्रद्धान किसे कहते हैं ? उत्तर - जीव- अजीवादि सात तत्त्वार्थ है; उनका जो श्रद्धान अर्थात् 'ऐसा ही है, अन्यथा नहीं' - ऐसा प्रतीतिभाव, वह तत्त्वार्थश्रद्धान है तथा विपरीत अभिनिवेश अर्थात् अन्यथा अभिप्रायरहित श्रद्धा, वह सम्यग्दर्शन है । (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 465 ) प्रश्न 40 - विपरीत अभिप्रायरहित श्रद्धान करना चाहिए - ऐसा कहने का क्या कारण है ? उत्तर - तत्त्वार्थश्रद्धान करने का आशय मात्र निश्चय करना - इतना ही नहीं है, किन्तु वहाँ ऐसा अभिप्राय है कि जीव - अजीव को पहिचानकर अपने को तथा पर को यथावत् रूप से जानना; आस्रव को पहिचानकर, उसे हेय जानना; बन्ध को पहिचानकर, उसे अहितरूप मानन; संवर को पहिचानकर, उसे उपादेय मानना; निर्जरा को पहिचानकर, उसे हित का कारण मानना; मोक्ष को पहिचानकर, उसे अपना परमहित मानना ऐसा तत्त्वार्थ श्रद्धान का अभिप्राय है। उससे विपरीत अभिप्राय का नाम विपरीत अभिनिवेश है; सत्य तत्त्वार्थ श्रद्धान होने पर उसका अभाव हो जाता है। - प्रश्न 41 - ऐसी विपरीत अभिनिवेशरहित श्रद्धा किस काल करने योग्य है ? उत्तर - विपरीत अभिनिवेशरहित जीव-अजीवादि तत्त्वार्थों

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