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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
क्षायिकभाव तथा मोक्षपर्याय नये प्रगट होते हैं, उस अपेक्षा से वे सादि (आदि सहित ) हैं और वे पर्यायें बदलने पर भी ज्यों के त्यों अनन्त काल होते ही रहते हैं, इसलिए उन्हें अनन्त कहा है।
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(3) अनादि- सान्त - संसारपर्याय अनादिकालीन है, किन्तु जिस भव्य जीव के संसारदशारूप अशुद्धपर्याय का अन्त आ जाता है, उसे वह अनादि - सान्त है ।
(4) सादि - सान्त सम्यग्दृष्टि को मोक्षमार्ग सम्बन्धी क्षयोपशम तथा उपशमभाव नये-नये होते हैं; इसलिए वे सादि, और उनका अन्त आता है, इसलिए सान्त हैं ।
प्रश्न 75 - सायंकाल के बादलों में क्या बदलता दिखाई देता है ?
उत्तर - उनमें वर्ण बदलता है; वह पुद्गलद्रव्य के वर्ण गुण की विभावअर्थपर्याय है और जो आकार बदलता है, वह उनके प्रदेशत्व गुण की विभावव्यञ्जनपर्याय है।
प्रश्न 76 - महावीरस्वामी और भगवान ऋषभदेव - दोनों की व्यञ्जन और अर्थपर्याय की तुलना करो ?
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उत्तर - दोनों के आकार • ऊँचाई आदि में अन्तर होने से उनकी व्यञजनपर्याय में अन्तर है, किन्तु प्रदेशत्व गुण के अतिरिक्त शेष गुणों की पर्यायें समान होने से उनकी अर्थपर्यायें समान हैं।
प्रश्न 77 दो परमाणु द्रव्यों की व्यञ्जनपर्याय और अर्थपर्याय की तुलना करो, तथा जीव की सिद्धपर्याय के साथ उनकी तुलना करो ?