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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
उत्पन्न (भावलिङ्गी मुनिपद के योग्य) आत्मा की शुद्धि विशेष को सकलचारित्र कहते हैं।
मुनिपद में 28 मूलगुणादि का जो शुभभाव होता है, उसे व्यवहारसकलचारित्र कहते हैं।
[निश्चयचारित्र आत्माश्रित होने से मोक्षमार्ग है - धर्म है; और व्यवहारचारित्र पराश्रित होने से वास्तव में बन्धमार्ग हैं; धर्म नहीं है।]
प्रश्न 72 - यथाख्यातचारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर - निश्चयसम्यग्दर्शनसहित चारित्र गुण की पूर्ण शुद्धता होने पर, कषायों के सर्वथा अभावपूर्वक उत्पन्न आत्मा की शुद्धि विशेष को यथाख्यातचारित्र कहते हैं।
प्रश्न 73 - निम्नोक्त बोल किस गुण की कौन-सी पर्याय हैं ? - ध्वनि, प्रतिध्वनि, छाया, प्रतिबिम्ब, सूर्य का विमान, घड़ी के लटू का हिलना, दुःख, मोक्ष और केवलज्ञान।
उत्तर - (1) ध्वनि वह पुद्गलद्रव्य के भाषावर्गणारूप स्कन्ध में से उत्पन्न हुई ध्वनिरूप पर्याय है। एक पुद्गल परमाणु ध्वनिरूप परिणमित नहीं होता, इसलिए वह किसी मुख्य गुण की पर्याय नहीं है, किन्तु स्पर्श गुण के कारण हुए स्कन्ध की विशेष प्रकार की पर्याय है और उस स्कन्ध का आकार, वह विभावव्यञ्जनपर्याय हैं।
(2) प्रतिध्वनि भी उपरोक्तानुसार भाषावर्गणा में से उत्पन्न हुई स्कन्धरूप पर्याय है, और उस स्कन्ध का आकार, वह विभाव -व्यञ्जन पर्याय है।