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प्रकरण दूसरा
और स्वयं ही अपनी पूर्व अवस्थाओं का नाश करता है, अर्थात् निरन्तर परिवर्तित होता है और द्रव्यरूप से नित्य-स्थायी रहता है ।
प्रश्न 35 - इससे सिद्धान्त क्या समझना ?
उत्तर - प्रत्येक द्रव्य त्रिकाल भिन्न-भिन्न, स्वतन्त्र है और प्रत्येक द्रव्य में अपने ही कारण पर्याय अपेक्षा से नयी अवस्था की उत्पत्ति, पूर्व पर्याय का नाश और द्रव्य अपेक्षा से नित्य स्थिर रहना - ऐसी स्थिति त्रिकाल हो रही है।
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प्रश्न 36 - जीव के अस्तित्व गुण को जानने से क्या लाभ है ? उत्तर - मैं स्वतन्त्र अनादि-अनन्त अपने ही कारण स्थित रहनेवाला हूँ, किसी पर से या संयोग से मेरी उत्पत्ति नहीं हुई है और न मेरा कभी नाश होता है। ऐसा अस्तित्वगुण को जानने से लाभ होता है और मरण का भय दूर हो जाता है।
(2) वस्तुत्व गुण
प्रश्न 37 - वस्तुत्व गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अर्थक्रिया अर्थात् प्रयोजनभूत क्रिया हो; जैसे कि आत्मा की अर्थक्रिया - जानना आदि है।
प्रश्न 38 सिद्ध भगवान कृतकृत्य हो गये हैं, तो अब उनका कार्य करना रुक गया है ?
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उत्तर - नहीं, क्योंकि उनमें वस्तुत्व गुण के कारण प्रत्येक गुण का प्रयोजनभूत कार्य अर्थात् निर्मल स्वभावरूप परिणमन प्रति समय हो रहा है ।