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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
प्रकार द्रव्य के प्रवाह का छोटे से छोटा अंश, वह परिणाम है। प्रत्येक परिणाम स्व-काल में अपनेरूप से उत्पन्न होता है, पूर्वरूप से विनष्ट होता है और सर्व परिणामें में एक प्रवाहपना होने से प्रत्येक परिणाम उत्पाद-व्ययरहित एकरूप ध्रुव रहता है और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य में समय भेद नहीं है, तीनों ही एक समय में हैं। ऐसे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-ध्रौव्यात्मक परिणामों की परम्परा में द्रव्य, स्वभाव से ही सदैव रहता है, इसलिए द्रव्य स्वयं भी मोतियों के हार की भाँति उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है।
(प्रवचनसार, गाथा 99 का अर्थ) (5) 'बीज, अङ्कर और वृक्षत्व - यह वृक्ष के अंश हैं । बीज का नाश, अङ्कर का उत्पाद और वृक्षत्व का ध्रौव्य (ध्रुवता) तीनों एक ही साथ हैं। इस प्रकार नाश, बीज के आश्रित है, उत्पाद, अङ्कर के आश्रित है और ध्रौव्य, वृक्षत्व के आश्रित है। नाशउत्पाद-ध्रौव्य, बीज-अङ्कर-वृक्षत्व से भिन्न पदार्थरूप नहीं है
और बीज-अङ्कर-वृक्षत्व भी वृक्ष से भिन्न पदार्थरूप नहीं है; इसलिए वे सब एक वृक्ष ही हैं। इसी प्रकार नष्ट होनेवाला भाव, उत्पन्न होनेवाला भाव और स्थित रहनेवाला ध्रौव्यभाव, वे सब द्रव्य के अंश हैं । नष्ट होनेवाले भाव का नाश, उत्पन्न होनेवाले भाव का उत्पाद और स्थित रहनेवाले स्थायी भाव की ध्रुवता एक ही साथ है। इस प्रकार नाश, नष्ट होनेवाले भाव के आश्रित हैं; उत्पाद, उत्पन्न होनेवाले भाव के आश्रित है। नाश-उत्पाद-ध्रौव्य, वे भावों से भिन्न पदार्थरूप नहीं है और वे भाव भी द्रव्य से भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं; इसलिए यह सब एक द्रव्य ही है।'
(प्रवचनसार, गाथा 101 का भावार्थ)