Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 16
________________ प्रकरण पहला पर्यायों में रहते हैं - ऐसी पदार्थों की स्थिति मोहक्षय के निमित्तभूत पवित्र जिनशास्त्रों में कही है। (प्रवचनसार, गाथा 87 की टीका) प्रश्न 59 - लोकाकाश में असंख्यात ही प्रदेश हैं, तो उसमें अनन्त प्रदेशी पुद्गलद्रव्य तथा अन्य द्रव्य भी कैसे रह सकेंगे? उत्तर - पुद्गलद्रव्य में दो प्रकार का परिणमन होता है - एक सूक्ष्म, दूसरा स्थूल। जब उसका सूक्ष्म परिणमन होता है, तब लोकाकाश में एक प्रदेश में भी अनन्त प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध रह सकता है। पुनश्च, समस्त द्रव्यों में एक-दूसरे को अवगाहन देने का सामर्थ्य है, इसलिए अल्प क्षेत्र में ही सर्व द्रव्यों के रहने में कोई बाधा नहीं होती। आकाश में समस्त द्रव्यों को एक ही साथ अवकाशदान देने का सामर्थ्य है; इसलिए एक प्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु रह सकते हैं। जिस प्रकार किसी कमरे में एक दीपक का प्रकाश रह सकता है और उसी कमरे में उतने ही विस्तार में पचास दीपकों का प्रकाश रह सकता है, तदनुसार। (मोक्षशास्त्र (हिन्दी), अध्याय -5, सूत्र 10 की टीका) प्रश्न 60 - द्रव्य का लक्षण क्या है? उत्तर - (1) सद्रव्यलक्षणम्। (मोक्षशास्त्र, अध्याय -5, सूत्र 29) अर्थात् - द्रव्य का लक्षण सत् (अस्तित्व) है। विशेषार्थ - जिसके 'है' पना (अस्तित्व) हो, वह द्रव्य है। 'अस्तित्व' गुण द्वारा 'द्रव्य' को पहिचाना जा सकता है; इसलिए इस सूत्र में 'सत्' को द्रव्य का लक्षण कहा है; जिसके-जिसके अस्तित्व ही, वह-वह द्रव्य है - ऐसा यह सूत्र प्रतिपादन करता है।

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