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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
और पर्यायों का स्वरूप-सत्व द्रव्य ही है, वे भिन्न वस्तु नहीं हैं) - ऐसा जिनेन्द्रदेव का उपदेश है। (प्रवचनसार, गाथा 87)
'ऋ' धातु से 'अर्थ' शब्द बना है। 'ऋ' अर्थात् पाना, प्राप्त करना, पहुँच जाना। 'अर्थ' अर्थात् जो पाये, प्राप्त करे, पहुँचे वह; अथवा जिसे पाया जाये, प्राप्त किया जाये - पहुँचा जाये वह। __ जो गुणों और पर्यायों को पायें - प्राप्त करें - पहुँचें, अथवा जो गुणों और पर्यायों द्वारा पाये जायें – प्राप्त किये जाएं – पहुँचे जाए - ऐसे 'अर्थ' वे द्रव्य है।
जो द्रव्यों को आश्रयरूप से पाये – प्राप्त करें - पहुँचे, अथवा जो आश्रयभूत द्रव्यों द्वारा पाये जायें – प्राप्त किये जायें – पहुँचे जायें - ऐसे 'अर्थ' वे गुण हैं। ___जो द्रव्यों को क्रमपरिणाम से पायें -प्राप्त करें - पहुँचे अथवा जो द्रव्यों द्वारा क्रमपरिणाम से (क्रमशः होनेवाले परिणाम से) पाये जायें -प्राप्त किये जायें, – पहुँचें जायें - ऐसे 'अर्थ' वे पर्यायें
(प्रवचनसार, गाथा 87 की टीका) __ प्रश्न 58 - उपरोक्तानुसार 'अर्थ' की व्यवस्था से संक्षेप में क्या समझें?
उत्तर - अर्थ (पदार्थ), अर्थात् द्रव्य - गुण और पर्यायें - इनके अतिरिक्त विश्व में दूसरा कुछ नहीं है और इन तीन में, गुणों
और पर्यायों का आत्मा, (उनका सर्वस्व) द्रव्य ही है। ऐसा होने से किसी द्रव्य के गुण और पर्यायें अन्य द्रव्य के गुणों और पर्यायोंरूप अंशतः भी नहीं होते। सर्व द्रव्य अपने-अपने गुण