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जैनशिलालेख - संग्रह
४६१ ) । इनमें पहला लेख सन् १०५३ का है तथा इसमें राजा वीर सान्तर-द्वारा उसके जैन मन्त्री नकुलरसको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । दूसरे लेखमे राजा तैलपदेवक जैन सेनापति गोग्गिकी मृत्युके बाद राजा द्वारा उसके कुटुम्बियोंको कुछ दान मिलनेका वर्णन है । यह लेख सन् १९६२ का है । तीसरे लेखमे राजा पाण्ड्यभूपाल द्वारा एक जिनमन्दिर के लिए भूमिदानका वर्णन है । यह लेख सन् १४१० का है । चौथा लेख सन् १५२२ का है तथा इसमे इम्मडि भैरवरस राजा द्वारा वरांगके नेमिनाथमन्दिर के लिए एक गाँवके दानका वर्णन है ।
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सिन्द कुलके सामन्तोंके चार उल्लेख मिले हैं ( क्र० १३८, १६६, २६१, २६४) ।` इनमे पहला सन् १०५३ का है तथा इसमें सिन्द कंचरस - द्वारा नयसेन आचार्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है । दूसरा लेख सन् १०८५ का है तथा यह सिन्द बर्मदेवरसके समयका दानलेख है । तीसरे लेखमे सन् ११६७ मे सिन्द होलरस द्वारा एक बसदिको दान दियं जानेका वर्णन है । अन्तिम लेखमे सन् ११७० मे मिन्द चावण्डरस द्वारा जैन शालाको भूमिदान मिलनेका वर्णन है ।
रट्ट कुलके उल्लेख छह लेखों मे हैं (क्र० १७६, १८६, २५१, ३१७, ३१८, ३१९) ! इनमे पहला लेख ११वी सदीका राजा कार्तवीर्य २ के समयका है, इसका विवरण अधूरा है। दूसरा लेख सन् १९०८ का है तथा इसमें राजा लक्ष्मीदेव द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका उल्लेख है । तीसरे लेखमे सन् १९६५ में राजा कार्तवीर्य ३ द्वारा एक्कसम्बुगेके जिनमन्दिर के
१. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला ( क्र० १४६ ) सन् ६५० के आसपासका हैं 1
२. पहले संग्रह में सिन्द राजाओंके लेख नहीं हैं ।
३. पहले संग्रह में इस वंशके दस लेख हैं जिनमें पहला (क्र० १३०) सन् ८७५ का है।