Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 01
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 402
________________ ३९४ जैनसाहित्यका इतिहास " बडा मतभेद है | बाहुबलि चरित्रमें गोम्मटेश्वरकी प्रतिष्ठाका समय इस प्रकार दिया है 'कल्क्यब्दे षट्शताख्ये विनुंतविभवसवत्सरे मासि चैत्र पञ्चम्या शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे । सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्ता चकार श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठाम् ॥' अर्थात् कल्कि सवत् ६०० में विभव संवत्सरमें चैत्र शुक्ल ५ रविवारको कुम्भलग्न, सौभाग्ययोग, मस्त ( मृगशिरा नक्षत्र में चामुण्डराजने वेल्गुल नगरमें गोमटेशकी प्रतिष्ठा कराई । किन्तु उक्त तिथि कब पडती है इसमे भी अनेक मत है । प्रो० घोपालने अपने वृहद्रव्यसंग्रहके अग्रेजी अनुवादकी प्रस्तावना में उक्त तिथिको २ अप्रैल ९८० ई० माना है । श्री गोविन्द पैने १३ मार्च ९८१ ई० माना है | ज्योतिपाचार्य श्री नेमिचन्द्रजीने "लिखा है कि भारतीय ज्योतिषके अनुसार बहुबलि चरित्रमे गोम्मट मूर्तिकी स्थापना की जो तिथि, नक्षत्र, लग्न, सवत्सर आदि दिये गये है वे १३ मार्च सन् ९८१ में ठीक घटित होते है । प्रो० हीरालाल जी ने लिखा है कि २३ मार्च १०२८ सन् मे उक्ततिथि वगैरह ठीक घटित होती है । किन्तु शामशास्त्रीने ३ मार्च १०२८ सन् वतलाया है । एस० श्री कण्ठशास्त्री 'कल्क्यब्दे' के स्थान पर 'कल्यब्दे' पाठ ठीक मानते है और शामशास्त्रीके मतको अमान्य करते हुए लिखते है कि १०२८ ई० तक चामुण्डरायके जीवित रहनेके प्रमाणोका अभाव है । उन्होने एक नये आधार पर मूर्तिकी स्थापनाका समय ९०७-८ ई० निर्धारित किया है। इस तरहसे मूर्तिकी स्थापनाके समयको लेकर बहुत मतभेद है । चामुण्डराय ने अपने चामुण्डराय पुराणमें मूर्ति स्थापनकी कोई चर्चा नही की है । इस परसे साधारणतया विद्वानोका यही मत है कि उसकी समाप्तिके पश्चात् ही मूर्तिकी स्थापना हुई है । किन्तु श्रीकण्ठशास्त्री इस बातको महत्व नही देते । रन्नका अजितनाथ पुराण श० स० ९१५ में समाप्त हुआ था । उसमें लिखा है कि 'अत्तिमव्वे'ने गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके दर्शन किये। अत यह निश्चित है कि श०स० ९१५ (वि०स० १०५०) से पहले मूर्तिकी प्रतिष्ठा हो १ जै० सि० भा० भा० ६, पृ० २६१ । , २ जै०शि०स० भा० १, प्रस्ता० पृ० ३१ ३ जै० एण्टी०, जि० ५, नं० ४ मे 'दी डेट आफ दी कन्सक्रेशन आफ दी इमेज, पृ० १०७ - ११४ ।

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