Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 01
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 417
________________ उत्तरकालीन कर्म-साहित्य : ४०९ धवलाके प्रारम्भमें ये नौ प्रश्न उठाकर उनका समाधान किया गया है और उसके समर्थनमें कुछ आप गाथाएँ भी उद्धृत की गयी है। इन्हीके आधारसे यह नौ प्रश्न चूलिका लिया गया प्रतीत होता है। पच भाग हार चूलिकामें उद्वेलन, विध्यात, अध प्रवृत्त, गुणसक्रम और सर्वसक्रम इन पांच भागहारोका कथन है । इन भागहारोके द्वारा जीवोके शुभाशुभकर्म अपने परिणामोके निमित्तसे अन्य प्रकृतिरूप परिणमन करते है। जैसे शुभ परिणामोका निमित्त पाकर बधा हुआ असातावेदनीयकर्म सातावेदनीय रूप परिणत हो जाता है। किस-किस कर्मप्रकृतिमे कौन-कौन भागहार सम्भव है और किस-किस भागहारके अन्तर्गत कौन-कौन प्रकृतियाँ है यह सव भी कथन किया गया है । साथ ही चूंकि पाँचो भागहार एक भाजक राशिके तुल्य है अत उनका परस्परमें अल्पबहुत्व भी बतलाया गया है । यह सव कथन पञ्चसग्रहमें नहीं है। दशकरण चूलिका-इसमें वन्ध, उत्कर्पण, अपकर्षण, संक्रमण, उदीरणा, सत्ता, उदय, उपसम, निधत्ति और निकाचना इन दस करणोका स्वरूप कहा गया गया है और बतलाया गया है कि कौन करण किस गुणस्थान तक होता है। करण नाम क्रिया का है-कर्मोमें ये दस क्रियाएँ होती है । कर्मप्रकृतिमें इन करणोका स्वरूप बहुत विस्तारसे वर्णित है। 'जयधवलामें 'दसकरणी सग्रह' नामक एक ग्रन्थका निर्देश है उसमें भी, जैसा कि उसके नामसे प्रकट होता है, दस करणोके कथनका सग्रह होना चाहिए । ५. वन्धोदय सत्त्व युक्त स्थान समुत्कीर्तन एक जीवके एक समयमें जितनी प्रकृतियोंका वन्ध, उदय अथवा सत्त्व सभव है उनके समूहका नाम स्थान है। इस अधिकारमें पहले आठो मूलकर्मोको लेकर और फिर प्रत्येक कर्मकी उत्तर प्रकृतियोको लेकर बन्धस्थानो, उदयस्थानो और सत्त्व स्थानोका कथन किया गया है। जैसे मूलकर्मोका कथन करते हुए कहा है कि तीसरे मिश्रगुणस्थानके सिवाय अप्रमत्त पर्यन्त छै गुणस्थानोमें एक जीवके आयुकर्मके विना सातकर्मोका अथवा आयु सहित आठ कर्मोका बन्ध होता है, तीसरे, आठवें और नौवें, इन तीन गुणस्थानोमें आयुके विना सात कर्मोका ही बन्ध होता है। दसवें गुणस्थानमें आयु और मोहनीयके सिवाय छ ही कर्मोका वन्ध होता है। ग्यारहवें आदि तीन गुणस्थानोमें एक वेदनीय कर्मका ही बन्ध होता है, और चौदहवें गुणस्थानमें एक भी कर्मका बन्ध नहीं होता । अत आठो कर्मोके चार बन्धस्थान होते है-आठ प्रकृतिक, सात प्रकृतिक, छै प्रकृतिक और एक प्रकृतिक । १ ज०० प्रे०का०, पृ० ६६०० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509