Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 21
________________ प्रथम अध्याय पुद्गल की परिभाषा "ममार क्या है तथा इसमें क्या है?" इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का विवेचन मसार के प्राय सभी महान् विचारको ने किया है। जैन-तीर्थंकरो ने इम विषय में जो विचारणा या परिकल्पना की है, वह एतद्विपयक मभी विचारणाओ या परिकल्पनामो से निराली है। जैन-आगमो में इम विपय पर विशद् विवेचन किया गया है। इस तरह का विपद एव सूक्ष्म विवेचन किमी अन्य धर्म, दर्शन या विचारक ने नही किया है। जैन मनीपियो ने प्रश्नोत्तर के रूप में, इस प्रश्न से सम्बन्वित तथा उसमे उत्पन्न होनेवाले अधिकाश पहलुओ तथा आशकायो को सुलझाया है। जैन-मिद्धान्त के अनमार लोक-मसार पट् द्रव्यात्मक है। उसके अनुसार इस मसार में आकाश, धर्म, अधर्म, पुद्गल, जीव और काल-ये छ द्रव्य है। कोई अन्य द्रव्य या वस्तु नही। इस ससार का माप सर्व दिशा में अनन्तानन्त है तथा इस अनन्तानन्त ससार में सम्पूर्ण भाव से सर्वत्र व्याप्त केवल श्राकाग द्रव्य ही है। १-गोयमा ६ दन्वा पण्णता, तजहा-धम्मत्यिकाए, अधम्मत्यिकाए, पागासत्यिकाए, पुग्गलत्यिकाए, जीवत्यिकाए, अद्धासमये य।

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