Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 36
________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल ___ स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण इन चारो का पणिमन सर्व पुद्गलो में होता है। ७ पुद्गल क्रियावान् है (१) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तसत्', यह मसार का प्रथम या मूल नियम कहा जा सकता है। सभी द्रव्य, सहभावी गुणो से ध्रुव है, तथा क्रमभावी पर्यायो से उत्पादव्यय रूप है। गुणो की अपेक्षा से सभी द्रव्य निष्क्रिय है। द्रव्याथिक नय की प्रधानता एव पर्यायाथिक नय की गौणता से द्रव्य को निष्क्रिय कहा जा सकता है। पर्यायो के उत्पाद-व्यय की अपेक्षा सभी द्रव्य सक्रिय है। पर्यायाथिक नय की प्रधानता तथा द्रव्याथिक नय की गौणता से - १-स्पर्शादय परमाणुषु स्कन्धेषु च परिणामजा एव भवन्ति । ---तत्त्वार्थसूत्र ५ २४ का भाग्य । २-पुद्गल जीवास्तु कियावत । -तत्त्वार्थसूत्र ५ : ६ का भाष्य । ३--तत्त्वार्थसूत्र ५ २६ ४-भगवानपि व्याजहार प्रश्नत्रयमात्रेण द्वादशाङ्ग प्रवचनार्थ सकलवस्तु सग्राहित्वात् प्रथमत. किल गणधरेभ्य -- "उप्पणेतिवा विगमेतिवा धुवेतिवा।" --तत्त्वार्थसूत्र ५ . ६ सिद्धिसेनगणि टीका। ५-पर्यायाथिकगुणभावे द्रव्यार्थिफप्रधान्यात् सर्वेभावा अनुत्पादा व्ययदर्शनात् निष्क्रिया नित्याश्च ।

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