Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 74
________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल अन्य एक प्राचार्य ने कहा है "प्रतादि अतमज्या अतते पेव इन्दिएगेज्या। ज दव प्रविभागी त परमाणु विण्णाणादि ।। जिसका आदि मध्य अन्त सव एक ही है, जो इन्द्रिय-ग्राह्य नही है, जो अविभागी है, ऐसे द्रव्य को परमाणु जानो। पुदगल परिभाषा की कसौटी पर (१) परमाणु पुद्गल द्रव्य है। इसका नाम ही द्रव्य परमाणु है। (१क) यह नित्य तथा अवस्थित है क्योकि यह स्कन्ध रूप परिणमन करके भी अपने व्यक्तित्व तथा स्वजाति को परित्याग नही करता है। यह "Law of Conservation of mass" को पालन करता है क्योकि कोई भी परमाणु नष्ट या विलोप नही होता है तथा न कोई नया परमाणु पुद्गल लोक में उद्भव होता है। जितने परमाणु थे, उतने ही है, उतने ही रहेंगे। (२) यह अजीव है। जीवत्व के लक्षण-गुण इसमे नही है। (३) इसका अस्तित्व है। परमाणु पुद्गल का अस्तित्व अनुमेय है। (४) परमाणु काय नही। वह कायरहित (Massless) है क्योकि यह ऐकिक (Unitary)है। लेकिन दूसरेपरमाणु

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