Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 81
________________ पचम अध्याय विभिन्न अपेक्षाओं से परमाणु पुद्गल ६३ परमाणु-पुद्गल में नहीं रह सकता है, अत परमाणु-पुद्गल सचित्त नहीं हो सकता है। लेकिन जीव और परमाणु-मुद्गल एकक्षेत्र प्रदेश में एक साथ रह सकते हैं। श्रात्मा-अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल के प्रात्मा होती है। इस 'आत्मा' शब्द का अर्थ जीवात्मा नहीं है। परमाणु का अपना निज का एक व्यक्तित्व होता है। इसी व्यक्तित्व को यहाँ आत्मा कहा गया है। यह व्यक्तित्व परमाणु-पुद्गल के भावो में प्रस्फुटित होता है। कहा जा सकता है कि परमाणु-पुद्गल का निज का स्वतन्त्र स्वभाव होता है, जो किसी दूसरे परमाणु-पुद्गल से भिन्न होता है। परमाणु-पुद्गल एक आत्मा है। प्रदेश-अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल द्रव्यदेश से अप्रदेशी है। अत क्षेत्रदेश से वह नियम से अप्रदेशी है, काल देश मे स्यात् अप्रदेशी है, स्यात् सप्रदेशी है, भाव-देश से भी स्यात् अप्रदेशी है, स्यात् सप्रदेशी है। क्षेत्रप्रदेश-अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल क्षेत्रप्रदेश अपेक्षा अप्रदेशी है अर्थात् एक ही क्षेत्रप्रदेश को रोकता है। व्यक्तिगत अवस्था में तो एक क्षेत्रप्रदेश रोकता है तथा दूसरे परमाणु के साथ सघवद्ध होकर भी स्वय एक ही क्षेत्रप्रदेश रोकता है, लेकिन समीप के दूसरे १-भगवतीसूत्र १२ १० १६ २-भगवतीसूत्र ५ ७ • ६ ३-भगवतीसूत्र ५ • ८ २

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