Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 86
________________ ६८ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल कल्पना भी नही हो सकती। परमाणु-पुद्गल दो प्रदेशी पुद्गलस्कन्ध को ७वें या हवें भागे से स्पर्श करता है। परमाणु-पुद्गल तीन प्रदेशीय पुद्गल-स्कन्ध को ७३, ८वे या हवें भागे से स्पर्श करता है। जिस प्रकार तीन प्रदेशीय स्कन्ध को स्पर्ण करता है, उमी प्रकार ४, ५, यावत् अनन्त-प्रदेशीय स्कन्व को उसी ७वें, या वें नियम से स्पर्श करता है। द्रव्य-स्पर्शता-अपेक्षा---एक परमाणु-पुद्गल को अन्य द्रव्यो के कितने प्रदेश स्पर्श कर सकते है, या यो कहिये, परमाणु पुद्गल अन्य द्रव्यो के कितने प्रदेशो को स्पर्श कर सकता है? एक परमाणुपुद्गल अधर्मास्तिकाय के जघन्य पद मे ४ तथा उत्कृष्ट पद में ७ प्रदेशो को स्पर्श करता है। अर्थात-एक परमाणु-पुद्गल जिस क्षेत्र-प्रदेश में है, वहां अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश होता है तथा एक परमाणु-पुद्गल के ६ तरफ (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व तथा अघोदिशाओ में) ६ अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हो सकते है। अत परमाणु-पुद्गल उत्कृष्ट में अधर्मास्तिकाय के ७ प्रदेशो को स्पर्श कर सकता है। लेकिन लोकाकाश के कोने में परमाणुपुद्गल के तीन ही तरफ अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हो सकते हैं, इसलिए जघन्य में परमाणु-पुद्गल को अधर्मास्तिकाय के चार प्रदेश स्पर्श कर सकते है। एक क्षेत्र-प्रदेश में साथ में अवगाह करनेवाले अधर्मास्तिकाय के प्रदेश को परमाणु-पुद्गल उपर्युक्त हवें भागे ११-भगवतीसूत्र ५ ७ १३

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