Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 88
________________ जैन पदार्य-विज्ञान में पुद्गल क्रियायें आकस्मिक होती है। परमाणु-पुद्गल की क्रियायें अनेक प्रकार की होती है। भगवती सूत्र ५७१ मे "कभी कम्पन करता है, कभी विविध कम्पन करता है" पद के वाद यावत् परिणमन (क्रिया) करता है, इस प्रकार लिखा है (सिय एयति सिय वेयति जाव परिणमति)।"जाव" शब्द के व्यवहार से स्पष्ट है कि परमाणुपुद्गल "एयति" "वेयति" के सिवा अन्य क्रियाएँ भी करता है। क्रियामो के भेद सूत्रो में विस्तार से नहीं मिलते है। टीकाकार अभयदेव सूरिने भी "क्रिया" के भेदो को खोज कर सग्रह करने को कहा है-(भगवती ३१३ की टीका)। परमाणु-पुद्गल एक क्षेत्र प्रदेश में जाने की देशान्तरगामी क्रिया भी कर सकता है। परमाणु-पुद्गल कम्पन-क्रिया करते-करते देशान्तरगामी क्रिया भी कर सकता है। देशान्तरगामी क्रिया कम्पन आदि अन्य क्रियायो के ताय हो सकती है। अब प्रश्न उठता है कि एक ही क्षेत्रप्रदेश में अवगाहन करता हुआ परमाणु-पुद्गल कैसी कम्पन-क्रिया कर सकता है। प्रचलित में कम्पन शब्द का जो अर्थ लिया जाता है, वह अर्थ धूजना यहाँ काम्य नहीं हो सकता है, क्योकि उसमे क्षेत्रप्रदेश से चलन होता है। अत एक क्षेत्र-प्रदेश में ही रहते हुए परमाणु-पुद्गल आवर्तन-क्रिया ही कर सकता है, लेकिन यह आवर्तन धुरीहीन होना चाहिए, क्योकि परमाणु मे धुरी की कल्पना नहीं १-भगवतीसूत्र ५ . ७ पर अभयवेव सूरि टीका। २-भगवतीसूत्र ५ : ७ • १७

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