Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 95
________________ पचम अध्याय . विभिन्न अपेक्षामो से परमाणु पुद्गल ७७ है। परमाणु-पुद्गल को क्रिया या गति करने में धर्मास्तिकाय का अवलम्बन लेना होता है। इस अवलम्वन के विना गति व क्रिया करने की सामर्थ्य रहते हुए भी परमाणु-पुद्गल गति व क्रिया नही कर सकता है। धर्मास्तिकाय लोकक्षेत्र में ही है, अलोकक्षेत्र में नहीं है, निष्क्रिय तथा अचल होने से लोक से अलोक में नहीं जा सकती है। अत परमाणु-पुद्गल परमवेग की एक समया लोकान्तप्रापिणी गति करते हुए भी लोकान्त में प्राकर प्रतिहत हो जाता है, एक जाता है। (२) सघात से बन्धनप्राप्त परमाणु-पुद्गल अन्य परमाणु या परमाणुप्रो के साथ समवाय मे रहता है तथा समवाय में ही गति व क्रिया करता है। इस प्रकार अपनी स्वतन्त्र अवस्था से प्रतिहत होता है। परमाणु की यह प्रतिहतता ही जगत की दृश्यमान विचित्रता का कारण है। (३) वेग प्रतिघात के सम्बन्ध में विशेष विवरण अभी तक कही पर नजर नहीं आया है। इस विपय में निम्नलिखित प्रश्न अवस्थापित होते है --- (१) प्रतिहत होने लायक वेग की शक्ति कितनी होनी चाहिए? (२) क्या जघन्य वेग में प्रतिघात होता है ? (३) क्या दोनो परमाणुमो की वेग-शक्ति का समान होना आवश्यक है? (४) क्या गति में विग्रह होना प्रतिघात माना जा सकता है? (५) क्या असमान वेग-शक्ति होने से एक परमाणु प्रतिहत होगा तथा दूसरा अधिक वेग-शक्तिवाला गति करता ही

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