Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 87
________________ पचम अध्याय विभिन्न अपेक्षालो से परमाणु पुद्गल ६६ से स्पर्श करता है। लेकिन अपने ६ तरफ ६ दिशाओ में अवस्थित अवर्मास्तिकाय के प्रदेशो को किस भागे से स्पर्श करता है, यह ठीक ममझ में नहीं आता। एक क्षेत्र-प्रदेश तथा अन्य क्षेत्र-प्रदेश के मध्य में कोई खालीपन या फांक या अन्तर नही होता है। इसलिए सलग्न में अवस्थित दो विन्दुनो में जो स्पर्श होता है, वही स्पर्श मलग्न अवस्थित अधर्मास्तिकाय के प्रदेश के साथ परमाणु-पुद्गल का होना चाहिए। निराशी में प्रश या देश की कल्पना करना व्यर्थ है। इसी तरह परमाणु-पुद्गल धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में ४ तथा उत्कृष्ट पद में ७ प्रदेशो को स्पर्श करता है। वह प्राकागास्तिकाय के जघन्य या उत्कृष्ट दोनो मे ७ ही प्रदेशो को स्पर्श करता है, क्योकि आकाशास्तिकाय सर्वत्र है। वह जीवास्तिकाय के अनन्त प्रदेशो को स्पर्श करता है, क्योकि एक क्षेत्र-प्रदेश में जीवास्तिकाय के अनन्त प्रदेश अवगाहन कर सकते है। यदि परमाणु-पुद्गल श्रद्धा समय के माथ स्पर्श करे, तो अनन्त अद्धा समय के साथ स्पर्श करता है। क्रिम तथा गति-अपेक्षा--परमाणु-पुद्गल क्रियावान् है तथा गतिशील है। मर्वदा ही क्रियावान या गतिशील है, ऐसी वात नही है। कभी क्रिया करता है, कभी नही भी करता। इसकी १-भगवतीसूत्र १३ ४ २३ २-भगवतीसूत्र १३ ४ ३६ ३-भगवतीसूत्र ५ ७ १

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