Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 91
________________ पचम अध्याय विभिन्न अपेक्षाओं मे परमाणु पुद्गल ७३ उत्कृष्ट चाल, एक समय में एक लोकान्न ने विपरीत लोकान्त तक का देशान्तर है। (५) गति व क्रियान्वन भी कर सकता है तथा अन्य पुद्गल के प्रयोग ने भी कर सकता है। अनियत नियम (१) स्थिर - निष्किय-परमाणु-पुद्गल क्विनमय तिव रिया आरम्भ करेगा - यह अनिश्चित है। एक ममय में लेकर श्रमन्येव नमय के भीतर किनी नमय में भी किया व गति प्रारम्भ कर सकता है। लेकिन धमन्यात् नमन के उपरान्त निश्चय ही गति व किया प्रारम्भ करेगा । Cand (२) तिमानयि परमाणु-पुद्गल कब गति व किना बन्द करेगा यह अनियन है। एक समय ने लेकर ग्रावलिका के अस्यात् भाग समय के भीतर किनी नमय भी क्रिया व गति बन्द कर सकता है । लेकिन श्रावनिका के श्रमख्यात् भाग नमय के उपरान्त निश्चय ही गति व क्रिया बन्द करेगा | (३) देशान्तर गति आरम्भ करने ने यह किन दिया में गति प्रारम्भ करेगा, यह अनियत है । स्वत गति थारम्न करने में यह किमी भी दिशा में गति कर नकता है। पर पुद्गल - प्रयोग से पति करने मे किस दिशा में गति करेगा, इनके नियम अभीतक हमको उपलब्ध नही

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