Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 76
________________ ५८ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल (८) परमाणु पुद्गल परिणामी है। अगुरुलघु-भाव में यह स्वय परिणामी है। यह अगुरुलघु परिणमन परमाणु पुद्गल के वर्ण , रस, गन्ध, स्पर्श के गुणाशो में होता है। एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल के साथ वन्धन को प्राप्त होकर पिछले परमाणु के द्वारा परिणमित किया जा सकता है। (९) परमाणु अनन्त है। (१०) परमाणु की गति प्रति चपल' होने पर भी यह आलोक में जाने में असमर्थ है। लोक में सर्वत्र इसकी गति है तथा लोक में यह सर्वत्र है। अत परमाणु पुद्गल लोक-प्रमाण कहा जाता है। । (११) परमाणु पुद्गल जीव द्वारा ग्रहण नही किया जा सकता है' क्योकि यह अतिसूक्ष्म है। अत आत्मभूत अवस्था में परमाणु पुद्गल जीव का कोई भी उपकार नहीं करता है और न जीव के परियोग में आता है। १-भगवतीसूत्र २५ • ४ ३८ २-एक समया लोकान्त प्रापिण । --भगवतीसूत्र १ ३-भगवतीसत्र २० ५ १३ का ४॥ ४-भगवतीसूत्र १८ ४ ६ ६ ८ -

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