Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 73
________________ चतुर्थ अध्याय परमाणु-पुद्गल ५५ क्रमण या भाग नहीं हो सकता है। परमाणु तलवार की धार या उनसे भी तीक्ष्ण धारवाले गस्त्र की धार पर रह सकता है। नलवार या क्षुर की तीक्ष्ण धार पर रहे हुए परमाणु-पुद्गल या टेदनभेदन नहीं हो सस्ता है या किया जा सकता है। परमाणु पुद्गल अग्निकाय के बीच में प्रवेग करके जलता नहीं है। पुष्कर मरत महामेघ के बीच में प्रवेग पर भीगता या आद्र नहीं होता है। गगा महानदी के प्रतियोत में मीत्रता से प्रवेश कर नष्ट नहीं होता है। उदक वन या उदव विन्दु में प्राथय लेकर विलोप नहीं होता है। "परमाणु पुद्गल" अनय है, अमत्र्य है, अप्रदेशी है, नावं नही है, नमव्य नहीं है, सप्रदेगी नहीं है। परमाणु पुद्गल का श्रादि भी नहीं है, अन्न भी नहीं है, मध्य भी नहीं है। यह मूक्ष्मातिमूक्ष्म है। परमाणु को न लम्बाई है, न चौटाई है, न गहगई है, यदि है तो इकाई रप है। यह माण्डलिक विन्दु (Spherical point) कहा जा सकता है। परमाणु निरागी है। यह सूक्ष्मता के कारण स्वय आदि, स्वय मध्य, स्वय ही अन्त है। १-भगवतीसूत्र ५ • ७ ६ २-भगवतीसूत्र ५ ७ ६ ३-भगवतीसूत्र ५ ७ ८ ४-भगवतीसून ५ ७ ६ ५-सोक्षम्यादात्यादयः प्रात्ममध्या प्रात्माताश्च । -राजवातिकम् ५:२५ १

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