Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 71
________________ चतुर्थ अध्याय परमाणु-पुद्गल ५३ "कारणमेव तदन्त्य सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणु । एकरम गन्ववर्णों द्विम्पर्य कालिंगश्च ॥" इन पद को ग्वेताम्बर-दिगाम्बर-दोनो मतो के आचार्यों ने उद्धृत किया है तथा इस पर टीकाएं की है। इस पद के अनुसार परमाणु पुद्गल (१) "कारण है" अर्थात् स्कन्ध पुद्गलो के बनने का कारण या निमित्त है। (२) "अन्त्य है" यर्थात् स्कन्ध पुद्गलो का भेद करते-करते अन्त में परमाणु निकलता है। (3) "सूक्ष्म है" अर्थात्-चरम क्षुद्र है। (४) "नित्य है" अर्थात्-परमाणु का कभी विनाश नहीं होता है। स्कन्ध स्प परिणमन होकर भी इसका व्यक्तित्व (Indviduality) नष्ट नहीं होता है। (५) “एक रन गन्ध वर्ण वाला है" अर्थात्-परमाणु के पाँच ग्मो में से कोई एक ही ग्म होता है, दो गन्यो में से एक ही गन्च होता है और पांच वर्षों में मे कोई एक वर्ण होता है। - १-तत्वार्य पर सिद्धिसेन गणि टीका ५ २५ । तत्त्वार्य राज वार्तिकम् ५ २५ १५ २-भगवतीसूत्र १४ ४५ ३-भगवतीसूत्र १८ ६ ५

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